नई शिक्षा नीति में संरचनात्मक सुधार का स्वरुप - Sahet Mahet

नई शिक्षा नीति में संरचनात्मक सुधार का स्वरुप


लेखक: विजय श्रीवास्तव (सहायक आचार्य, लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय)
सह-लेखक:अनूप श्रीवास्तव (सहायक आचार्य , शारदा विश्वविद्यालय)

लगभग ३४ वर्षो अंतराल के पश्चात् भारतसरकार ने नई शिक्षा नीति प्रस्तावित की है इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा व्यवस्था को लेकर कई व्यापक परिवर्तन किये गये है| राजनीतिक और शैक्षिक संदर्भो में कई विचारक इसे सुधारवादी नीति भी मानते है | एक समावेशी लोकतंत्र में उत्कृष्ट शिक्षा नीति क्योंकि एक समावेशी आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्तकरती है और विभिन्न पहलुओं पर आलोचनात्मक विवेचन करती है |
किसी भी अन्य सार्वजनिक नीतियों की तरह नई शिक्षा नीति भी नीति निर्माण की पांच प्रक्रियाओं से गुजर के आती है ,क्योंकि शिक्षा नीति का उद्देश्य लोक कल्याण होता है इसलिए इसे मौलिक नीतियों की वर्ग श्रेणी में रखा की जाता है | वर्तमान समय में लागू की गई शिक्षा नीति सार्वजनिक नीति निर्माण की चरणबद्ध प्रक्रिया को अपनाकर बनाई गई है, किन्तु इसमें सैंवधानिक पक्ष का उल्लंघन हुआ है | इस प्रक्रिया में विभिन्न स्तरों के हित धारकों और सुधारकों की आलोचनाओं को बहुत ही कम या नगण्य स्थान दिया गया है |

वर्तमान सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कई शैक्षिक संबंधी विषयों को स्थान दिया है| जहां तक इस नीति में नवीनता का प्रश्न है इन बिंदुओं को स्थान दिया गया है जैसे कि संरचनात्मक सुधार, बहुभाषावाद, समावेशी लोकतंत्र, नैतिक दृष्टिकोण ,शैक्षिक स्वतंत्रता, संस्थानों की भूमिका, अधिगम, पठन-पाठन,आर्थिक प्रभाव नवाचार, अंतरविषयक और बहुविषयकशोध और अनुवाद,निष्पादन और मूल्यांकनको प्राथमिकता दी गई है| इसका अर्थ यह है कि नई शिक्षा नीति की एक तरफ जो विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की अवधारणा पर बल देती है और दूसरी ओर प्राथमिक माध्यमिक और उच्च शिक्षा में संरचनात्मक सुधारों की वकालत करती है |कोठारी आयोग की कुछ सिफारिशों को इसमें स्थान दिया गया है | जिसके हमें दीर्घकाल में अच्छे परिणाम भी दिखाई दे सकते हैं| शिक्षा के प्रशासन, बुनियादी ज्ञान के विकेंद्रीकरण और इसके परिचालन को भी सरल और पारदर्शी बनाया गया है| शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया भी एक तरह से लचीली कर दी गई है |इससे शिक्षकों को पठन-पाठन में अकादमी स्वतंत्रता मिलेगी |

नई शिक्षा नीति का सबसे प्रभावशाली और आकर्षक बिंदु बहुभाषावाद है| जिसमें विद्यार्थियों को प्राथमिकस्तर पर उनकी मातृभाषा और स्थानीय क्षेत्रीय भाषा में सीखने के लिए बल दिया गया है| प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में सीखने से विद्यार्थियों की रचनात्मकता और विषय को व्यवहारिक तौर पर समझने में सहायता मिलेगी | अच्छी बात यह है कि ना किसी भाषा का विरोध है और ना ही किसी भाषा का प्रदर्शन प्रभाव | उच्च शिक्षा में भी वैश्विक स्तर के साहित्य का क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद को बढ़ावा देना भी एक क्रांतिकारी प्रयास है किंतु भाषा के इस अर्थशास्त्र में विकेंद्रीकरणका अभाव भी दृष्टिगत होता है| बिना ग्राम विश्वविद्यालयों की स्थापना और ज्ञान के विकेंद्रीकरण की भाषाओं के संरक्षण और उसके माध्यम से नवीन ज्ञान का सृजन करना कठिन कार्य है |इससे नीति के अनुपालन में भी कुछ बाधाएं आ सकती हैं फिर भी पिछली शिक्षा नीति की तुलना में इस शिक्षा नीति में भाषाओँ के संरक्षण जोर देना प्रशंसनीय है |

नई शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम की विषय वस्तु को लचीला बनाने की बात की गई है, जो कि स्वदेशी, स्वतंत्रता देश प्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत है| पाठ्यक्रम निर्माण में अकादमी वर्ग को एकता अखंडता जैसे विषयों को समान विज्ञान से संबंध करने को कहा गया है | शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा इस बात पर बल देना कि “विश्वविद्यालयों द्वारा डिग्री कॉलेजों को कुकुरमुत्तों तरह मान्यता नहीं दी जाएगी”| इससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खुले शहरी शैक्षिक माफियाओं के डिग्री कॉलेजों पर रोक लगेगी और उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार कम होगा | यह प्रयास रहेगा कि उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले कालेजों को स्वायत्तता दी जाए | इस बात का प्रावधान भी नई शिक्षा नीति में किया गया है|

नई शिक्षा नीति में अंतर विषयक और बहु-विषयक पद्धति को बढ़ावा देने से मानविकी और विज्ञान विषयों का अंतर भी कम होगा विद्यार्थियों के द्वारा दुर्भाग्यवश पढ़ाई छोड़ने पर प्रतिवर्ष के हिसाब से डिग्री डिप्लोमा या इंटर्नशिप प्रदान करने से उनके बहुमूल्य समय को खराब होने से बचाएगा साथ ही साथ एक प्रकार के होने वाले भेदभाव का उन्मूलन भी होगा | प्रशंसा की बात यह है कि नई शिक्षा नीति में निजी और सार्वजनिक दोनों संस्थानों के लिए सामान नियमावली का प्रधान प्रावधान है| विदेशी विश्वविद्यालयों के आने से भी प्रतियोगिता और नवाचार की भावना को बल मिलेगा और हमारे विश्वविद्यालयों जो कि वैश्विक स्तर पर बहुत पिछड़े हुए हैं उन्हें भी नए शोध की प्रेरणा मिलेगी| नई शिक्षा नीति में क्रेडिट ट्रांसफर और विद्यार्थियों का स्वयं मूल्यांकन करना भी एक सराहनीय प्रयास है| जिससे रट्टा मार शिक्षा प्रणाली और सैद्धांतिक ज्ञान के और मूल्यांकन की कमी दूर की जा सकेगी ग्रेडिंग सिस्टम को भी सरल बनाया गया है|

व्यवहारिक शिक्षा और रोजगार परक शिक्षा की दृष्टि से भी नई शिक्षा नीति नवाचारी है | किन्तु ये नवाचार की सार्थकता तब तक सिद्ध नहीं होगी जब तक समाज में श्रम की महत्ता और स्वाभिमान की रक्षा न हो | भारतीय समाज में महात्मा गांधी की इस अवधारणा को बल मिलना चाहिए कि सभी काम समान हैं और जितना मूलयवान एक वकील का बौद्धिक श्रम है उतना ही मूल्यवान एक मजदूर का शारीरिक श्रम है | नई शिक्षा नीति में इंटर्नशिप और व्यवहारिक प्रशिक्षण की बात को इसी संदर्भ में रखना चाहिए | ये एक प्रकार की अहिंसक सोच है | ट्रेनिंग और इंटर्नशिप के विचार को गाँधी के नई तालीम से जोड़कर इसके उद्देश्यों को सहज रूप में प्राप्त किया जा सकता है |

अगर समग्र रूप से नई शिक्षा नीति आयोग का अवलोकन किया जाए तो प्रथम दृष्टया या एक समावेशी लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित करने वाली और छात्र केंद्र दिखाई देती है किंतु हमें यह सब भी ध्यान रखना होगा कि बहुभाषावाद और सांस्कृतिक संरक्षण के नाम पर हिंदुत्व की अवधारणा को पाठ्यक्रमों में ना थोपा जाए | राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण एक अच्छी संकल्पना है किंतु उग्र राष्ट्रवाद की भावना संविधान के मूल भावना के विपरीत है | नई शिक्षा नीति संवैधानिक संरक्षण के साथ सांस्कृतिक संरक्षण करें तो इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वदेशी संकल्पना को सही अर्थों में साकार किया जा सकता है | अन्य मूल नीतियों की तरह नई नीति समावेशी विकास के लिए एक उत्प्रेरक का कार्य कर सकती है अब हमें इसके लिए तैयार रहना चाहिए| किन्तु यदि उग्र हिंदूवादी विचारधाराएं को इसके द्वारा थोपने का प्रयास हुआ , तो ये भारतीय शिक्षा जगत की सबसे विघटनकारी नीति साबित होगी |


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