सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से देंगी इस्तीफा


ब्यूरो रिपोर्ट। कभी देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी मौजूदा समय में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस राह भटक गई हो। कांग्रेस पार्टी के अंदर नेतृत्व का गंभीर संकट व्याप्त हो रहा है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद पिछले एक साल से सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम कर रही है। सोनिया गांधी का कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में एक साल का कार्यकाल भी 10 अगस्त को पूरा हो चुका है। लेकिन अभी तक कांग्रेस पार्टी में नए अध्यक्ष का चुनाव करवाने की कोई प्रक्रिया प्रारंभ नहीं हो पाई है।

चूंकि सोनिया गांधी पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष तो है मगर उम्र के हिसाब से वह अधिक भाग दौड़ करने में सक्षम नहीं है। अक्सर बीमार रहने के कारण अधिक लोगों से नहीं मिल पाती है। ऊपर से प्रदेशों में लगातार नेतृत्व का संकट व्याप्त होता जा रहा है। कहने को तो कांग्रेस में हर काम आलाकमान की सहमति से किया जाता है। मगर आलाकमान में कौन-कौन नेता शामिल है। इस बात का किसी को पता नहीं है।

पहले के समय कांग्रेस में कांग्रेस कार्य समिति सबसे प्रभावशाली व महत्वपूर्ण होती थी। कार्यसमिति में लिया गया निर्णय अंतिम होता था। इस कारण कांग्रेस कार्य समिति ही कांग्रेसी आलाकमान मानी जाती थी। मगर मौजूदा समय में कांग्रेस कार्य समिति की भूमिका सीमित हो गई है। कार्यसमिति में ऐसे नेताओं की बहुलता है जिनको चुनाव लड़े जमाना बीत गया है। जो वर्षों से राज्यसभा के रास्ते संसद में आते रहे हैं।

इस कारण से उन नेताओं की आम जनता में प्रभाव समाप्त हो गया है। कार्यसमिति में शामिल अधिकांश नेता अपने परिवार जनों को भी राजनीति में आगे बढ़ा रहे हैं। इस कारण नई पीढ़ी के उन नेताओं से उनका टकराव बना रहता है जो मेहनत करके सांगठनिक क्षमता से आगे बढ़े हैं। कांग्रेस में आज युवा व पुराने नेताओं के मध्य वर्चस्व की लड़ाई चल रही है।

सोनिया गांधी के कांग्रेस पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद पुराने नेताओं का फिर से पार्टी में बोलबाला हो गया। इसी कारण राहुल गांधी के समय आगे बढ़ाए गए युवा नेताओं को पुराने नेताओं ने एक-एक ठिकाने लगाना शुरू कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया, अशोक तवर, संजय निरुपम, सचिन पायलट, प्रियंका चतुर्वेदी, संजय झा जैसे नेताओं को धीरे धीरे साइड लाइन किया जाने लगा।

मध्यप्रदेश में तो कमलनाथ व दिग्विजय सिंह की मनमानी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना पड़ा। उनके साथ उनके समर्थक 22 विधायकों ने भी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था। इस कारण मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार गिर गई थी। वहां डेढ़ साल बाद ही फिर से भाजपा के शिवराज सिंह चैहान मुख्यमंत्री बन गए। इससे पूर्व यही स्थिति कर्नाटक में दोहराई गई थी। जहां भी भाजपा के येदुरप्पा फिर से मुख्यमंत्री बन गए थे।
दोनों ही जगह पार्टी के स्थानीय नेतृत्व से नाराज लोगों की पार्टी आलाकमान ने बात नहीं सुनी। वहां प्रादेशिक नेतृत्व को एकतरफा छूट दी गई।

जिस कारण असंतुष्ट नेताओं को लगने लगा कि पार्टी नेतृत्व द्वारा उनकी उपेक्षा की जा रही है। इस कारण उन्होंने पार्टी छोड़कर भाजपा में जाना उचित समझा। मध्य प्रदेश व कर्नाटक कांग्रेस में जो कुछ घटा उसके लिए वहां के प्रभारी महासचिव भी पूरी तरह जिम्मेदार थे। जिन्होंने असंतुष्ट गुट के नेताओं की बातों को ना तो सुना और ना ही उसका समय रहते कोई समाधान निकाला। प्रभारी महासचिव सिर्फ प्रदेश के मुख्यमंत्री को ही खुश करने में लगे रहे। उनकी बातों पर ही एकतरफा फैसला करते रहे।

हालांकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद वहां के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया को हटाकर मुकुल वासनिक को महासचिव बनाया गया है। लेकिन अब मुकुल वासनिक भी कुछ नहीं कर सकते। मध्यप्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनी थी। उसे केंद्रीय नेतृत्व की लापरवाही व प्रादेशिक नेताओं की मनमानी के चलते मात्र डेढ़ साल में गिरा दिया गया। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के विधायक लगातार त्यागपत्र दे रहे हैं। जिससे वहां कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है।

मध्य प्रदेश की तरह ही राजस्थान में भी उप मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सचिन पायलट ने अपने समर्थक 18 विधायकों को लेकर पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी थी। उनका भी यही आरोप था कि मुख्यमंत्री उनकी बातों को तवज्जो नहीं देते हैं। प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे दिल्ली आलाकमान में सिर्फ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ही पैरवी करते हैं। इस कारण उन्होंने पार्टी में अपनी लगातार हो रही उपेक्षा के चलते अपने समर्थक  22 अन्य विधायकों को लेकर गुडगांव चले गए।

उनका एक ही कहना था मैं कांग्रेस में हूं और कांग्रेसी रहूंगा। कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ रहा हूँ। मेरी कांग्रेस से नहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से असहमति है। हमारी बात कहीं नहीं सुनी जा रही है। इसलिए हमें मुख्यमंत्री के खिलाफ विद्रोह करना पड़ा है। उन्होने प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे पर भी पक्षपात करने का आरोप लगाया।

यह तो अच्छा रहा कि एक महीने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के दखल के बाद राहुल गांधी व सोनिया गांधी से सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायकों की मुलाकात करवाकर रूबरू बात करवाई गई। जिस पर सोनिया गांधी ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनकी मुख्यमंत्री गहलोत से जो भी शिकायतें हैं उन सब को दूर करवाया जाएगा। राजस्थान के प्रकरण के समाधान के लिये दिल्ली से तीन वरिष्ठ नेताओं की एक समिति बनाई जाएगी जो वहां के सभी मुद्दों को सुलझायेगी। इसके बाद सचिन पायलट जयपुर आकर विधायक दल की बैठक में भी शामिल हो चुके हैं।

यहां प्रश्न उठता है कि पार्टी की भारी फजीहत होने के बाद प्रियंका गांधी ने जो काम एक महीने बाद किया। उसे पहले भी किया जाता जा सकता था। उसके अलावा दिल्ली से संकट को निपटाने के लिए भेजे गए पार्टी पर्यवेक्षक प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन व राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी अपनी भूमिका सही ढंग से नहीं निभाई। उन्होंने जयपुर आकर प्रेस के माध्यम से पायलट को पार्टी से निकालने की चेतावनी देते रहे। वो सभी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के प्रवक्ता की तरह काम करने लगे। जिससे स्थिति और ज्यादा बिगड़ गई।

कांग्रेस आलाकमान को चाहिए कि केंद्रीय नेतृत्व में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे ऐसे लोगों को पद मुक्त करें जो निष्पक्षता से काम नहीं कर किसी प्रभावशाली नेता के पैरोकार के रूप में काम करते हैं। कांग्रेस पार्टी को केंद्रीय स्तर पर एक ऐसी प्रभावशाली कमेटी बनानी चाहिए जो ऐसे मुद्दों पर समय रहते ध्यान देकर उनका निदान करवा सके। प्रदेश प्रभारी व सह प्रभारी पद पर ऐसे लोगों को लगाया जाये जो निष्पक्षता से काम करने वाले हों। उनकी कार्यप्रणाली की समय-समय पर निगरानी की जानी चाहिये। ताकि वो अपनी मनमानी नहीं कर सके व कांग्रेस को बार-बार अपने नेताओं की बगावत का सामना नहीं करना पड़े।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *