हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम समीक्षा: एक कदम समता की ओर


शोभिता श्रीवास्तव , (लेखिका अधिवक्ता हैं और विधि विषयों पर स्वतन्त्र लेखन करती हैं )

भारत में सबको अपना अधिकार बराबर मिला हुआ है. | किसी को जल्दी तो किसी को देर से, ऐसे ही लड़कियों को भी अधिकार मिला संवैधानिक ढंग से, हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956 के तहत, जिसमे लड़का और लड़की को समान दर्जा मिला | हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६, कई कानूनों में से एक है। इस अधिनियम में बताया गया है कि जब किसी हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हो जाती है, तो उस व्यक्ति की सम्पत्ति को उसके उत्तराधिकारियों, परिजनों या सम्बन्धियों में कानूनी रूप से किस तरह वितरित किया जाएगा |

अधिनियम में मृतक के वारिसों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है, और मृतक की संपत्ति में उनको मिलने वाले हिस्से के बारे में भी बताया गया है। यहाँ हम सिर्फ लड़कियों के पक्ष की बात कर रहे है | साथ उसका कानून भी जान ले, अगर हिन्दू संयुक्त परिवार का मुखिया वसीयत छोड़े बिना ही मर जाता है और उसके परिवार में बेटे और बेटियां हैं। उसकी सम्पत्ति में एक मकान भी है, जिस पर किसी का पूरी तरह से कब्जा नहीं है , ऐसे में बेटियों को हिस्सा तभी मिलेगा, जब बेटे अपना-अपना हिस्सा चुन लेंगे। अगर बेटी अविवाहित, विधवा या पति द्वारा छोड़ दी गई है , तो कोई भी उससे घर में रहने का अधिकार नहीं छीन सकता। विवाहित महिला को इस प्रावधान का अधिकार नहीं मिलता।

हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम (संशोधित) के तहत 9 सितंबर 2005 को जीवित कर्ताओं की जीवित पुत्रियों को संपत्ति में हमवारिस होने का अधिकार है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि पुत्रियों का जन्म कब हुआ है। अगस्त 2020 में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने हिन्दू उत्तराधिकारी कानून में किए गए संशोधन की व्याख्या की | उन्होंने कहा कि कानून संशोधन से पहले भी अगर पिता की मृत्यु हो चुकी हो, तब भी उसकी बेटियों को पिता की सम्पत्ति में बराबर हिस्सा मिलेगा. कोर्ट की ओर से आदेश दिया गया , कि हिन्दू अविभाजित परिवार की पैतृक सम्पत्ति में बेटी और बेटे का समान अधिकार होगा, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने के पहले ही उसके पिता की मृत्यु क्यों न हो गई हो |

दरअसल, 2005 में (हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956) में संशोधन किया गया था, इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का अधिकार की बात कही गई थी| श्रेणी-एक की कानूनी वारिस होने के नाते संपत्ति पर बेटी के बेटे बराबर हक है | शादी से इसका कोई लेना-देना नहीं है| इस कानून के मुताबिक पिता की सम्पत्ति पर बेटियों का बराबर का अधिकार होगा.| इसलिए कोई भी बेटी को उसके अधिकार से वंचित नहीं कर सकता | इसके साथ ही यदि पिता की मौत बिना वसीयत किए हुई है तो सभी संतानों का प्रॉपर्टी पर बराबर अधिकार होगा. फिर चाहे वह बेटा हो या बेटी |
देर से ही सही उच्चतम अदालत द्वारा उत्तराधिकार अधिनियम 2005 की नये सिरे से समीक्षा करना एक क्रांतिकारी कदम है | इस कदम से देश में लैंगिक समानता और महिला अधिकारों को संबल मिलेगा और , जो भारतीय समाज अब तक विवाहिता बेटियों के प्रति विभेदकारी दृश्टिकोण अपनाता आ रहा है , कानून के साये में सही महिला अधिकारों का सम्मान तो करेगा |


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