ओवैसी के गढ में बीजेपी का बजा डँका, बीजेपी ने केसीआर के वोटबैंक में लगाई सेंध


अमित शाह (गृहमंत्री)

तेलंगाना। ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन चुनाव इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है। चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत तो नहीं मिला, लेकिन उसके लिए इस चुनाव के नतीजे दक्षिण भारत में भाग्य के दरवाजे खोल सकते हैं। इस चुनाव में बीजेपी ने एक बात साबित कर दी कि उसके लिए लोकसभा और लोकल चुनावों में फर्क नहीं होता। हर जगह वो एड़ी चोटी का जोर लगा देती है।

इस बार के चुनावी रिजल्ट ने हैदराबाद में बीजेपी की दमदार एंट्री हुई। सियासत की जिस जमीन पर बीजेपी के लिए दहाई का आकड़ा छूना मुश्किल था, उसी सियासी जमीन पर बीजेपी ने असंभव मिशन को संभव में बदल दिया। बीजेपी नंबर टू पार्टी बन गई जबकि ओवैसी नंबर थ्री पर पहुंच गए।

149 सीटों के परिणाम में टीआरएस को 55 सीट, बीजेपी को 48 सीट और AIMIM को 44 सीट पर जीत मिली जबकि कांग्रेस को दो सीट से संतोष करना पड़ा। बीजेपी नंबर दो की पार्टी बन गई, टीआरएस को 99 से 55 सीटों पर सिमटा दिया। हैदराबाद के छोटे इलेक्शन में बीजेपी की ये बड़ी जीत है।

हैदराबाद के लोकल इलेक्शन को समझने के लिए आपका 2016 और 2020 के रिजल्ट के अंतर को समझना होगा। बीजेपी ने 2016 में 4 सीट जीती। 2020 में 48 सीट जीती। 4 से 48 सीट तक पहुंची यानी भगवा पार्टी ने 12 गुना ज्यादा सीटें जीती।

हालांकि बीजेपी मैजिक फिगर तक नहीं पहुंच सकी। लेकिन टीआरएस और ओवैसी का सपना तोड़ दिया। क्योंकि क्षेत्रीय क्षत्रपों को उनके गढ़ में घुसकर सीधी बीजेपी ने चुनौती दी और अपने विस्तार से विरोधियों को बेचैन कर दिया। बीजेपी के रणनीतिकारों ने बड़े-बड़े धुरंधरों को चित कर दिया।

चुनावी बिसात पर शह और मात का खेल खेला गया। AIMIM और टीआरएस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, लेकिन रणनीति एकदम क्लीयर बनाई। दोनों की नीति और नीयत स्पष्ट थी। ओवैसी को बीजेपी के हमले से अपने गढ़ को महफूज रखना था, तो टीआरएस को अपनी परफॉर्मेंस को दोहराकर सीटों को बीजेपी की झोली में जाने से रोकना था।


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