क्या मुगलिया सल्तनत के गुलामों ने देश के अन्य अजूबों को कभी भी विश्व पटल पर नही आने दिया?


देश के इतिहासकारों ने ताजमहल को एक अजूबे की तरह वर्णित करते हुए, उसे विश्व का आठवां आश्चर्य स्थपित करा लिया, परन्तु इन इतिहासकारों ने मुगलिया सल्तनत के भय से कभी भी देश की अन्य कलाकृतियों को उतनी मजबूती से विश्व पटल पर वर्णित नही किया जिससे उन कलाकृतियों के विषय मे जन मानस जान पाता।

ताजमहल तो एक झांकी मात्र है, देश के अंदर नाशिक में त्र्यंबकेश्वर महादेव, चितौड़गढ़ जिसे दूसरा स्वीटजरलैंड भी कहा जाता है, कर्नाटक के चित्रदुर्ग, मैसूर का चमराजेश्वर मन्दिर, बेल्लोर कर्नाटक में श्री पुरम स्वर्ण मंदिर, राजस्थान पाली में ओम शिव मंदिर, बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय, कर्नाटक में 48 फीट गहरी 15 फीट ऊंची बदामी गुफा, कर्नाटक 12वीं शताब्दी में अद्भुत नक्कासी का उदाहरण चननेकेश्वरा मंदिर, पापनाशिनी मन्दिर ओडिसा, होयसिला मन्दिर कर्नाटक यह एक बर्ल्ड हेरीटेज है, विधाशंकर मन्दिर कर्नाटक, गलता जी मन्दिर राजस्थान की पहाड़ियों के मध्य, होयश्वेर मन्दिर के अलावा खजुराहो के अद्धभुत मन्दिर, इन सभी का निर्माण हमारे पूर्वजों ने कड़ी मेहनत करके मात्र छोटी छोटी छेनियों, हथौडा, कुदाल, फावड़ा आदि के साधारण से साधनों से किया था।

इन दर्शनीय स्थानों की कलाकृतियों में हमारे पूर्वजों ने जिस कलाकारी का उदाहरण दिया है, वह अदुतीय और अनुकरणीय है, लेकिन अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है, कि आजादी मिलने के बाद भी ताजमहल को लेकर विश्व में चर्चा होती है, लेकिन देश के अंदर तमाम ऐसे आश्चर्यजनक अजूबे हैं जिनका उल्लेख ईमानदारी से किया जाए, तो ताजमहल उनकी कलाकारियो के आगे बौना सा प्रतीत होगा।

हमारे देश की मौजूदा सरकार को चाहिए कि ताजमहल के साथ-साथ भारत की पहचान सनातन धर्म संस्क्रति के आधार पर देश के विभिन्न प्रान्तों में जो भी प्राचीन कलाकृतियो की ऐतिहासिक अमूल्य धरोहरे है, उनका वर्तमान इतिहासकारों से कहकर उनकी कलाकृतियों से देश की जनता के साथ विश्व को भी अवगत कराने का प्रयास करें तभी हमारे देश की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही भारत फिर से विश्व गुरु की श्रेणी में अपना स्थान स्थापित कर सकता है।

लेख: देवेंद्र शर्मा देवू


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