लखनऊ: भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी की जांच में सहायक हो रहे हैं प्रशासनिक अधिकारी


लखनऊ। सरकार चाहे लाख दावें कर लें कि भ्रष्टाचार को समाप्त करके रहेंगे। लेकिन सरकार के यह दावें कोरी जुमली ही साबित होते नजर आ रहे हैं और उसके पीछे का कारण मात्र इतना है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी भ्रष्टाचार को समाप्त करना ही नहीं चाहते हैं। सूत्रों के हवाले से ताजा मामला राजधानी लखनऊ में स्थित नियोजन विभाग के विकास अन्वेषण एवं प्रयोग प्रभाग राज्य नियोजन संस्थान कालाकांकर हाउस लखनऊ जो कि मुख्यमंत्री के विभागीय कार्यालयों के अंतर्गत आता है। उस कार्यालय में सांख्यिकी के पद पर तैनात सेंसर पाल सिंह के द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की जांच को दबाने की कोशिश की जा रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अगर माने तो सांख्यिकी पद पर तैनात सेंसर पाल सिंह द्वारा अपने पद का पूरा दुरुपयोग किया गया है और वित्तीय भ्रष्टाचार कर के शासन को जमकर चुना लगाया गया है। इसके साथ ही साथ बहुत से ऐसे भ्रष्टाचार के कारनामे सेंसर पाल ने किये हैं जिसकी एक लंबी सूची तैयार हो चुकी है। जिनमें प्रमुख तौर से लाइब्रेरी से सरकारी किताबों को रद्दी में बेचना सरकारी वाहन में का दुरुपयोग करना। अन्य बहुत तरीके भुगतान जो दूसरे कर्मियों से पेड बाय मी लिखवा कर खाते के ट्रेजरी से पैसा स्वयं ले निकाल लेना। सूत्रों के मानें तो इस मामले में उदाहरण के तौर पर ओमप्रकाश,राजेंद्र सिंह,राज कुमार नाम के कर्मचारियों के खाते में पैसा मांगा कर सेंसर पाल द्वारा धमकी देकर पैसा वापस ले लेना।

इतना ही नहीं सेंसर पाल द्वारा नई बिल्डिंग पुरानी बिल्डिंग के लिए बहुत से चीजों की खरीद-फरोख्त के फर्जी बिल बना कर धन उगाही का कार्य किया गया है। चाहे वह 26 जनवरी को लड्डू बांटने का हो या बांस की सीढ़ी खरीदने का। सांख्यिकी पद पर तैनात होने के बाद भी अपनी जिम्मेदारी से विमुख होकर पैसे की लालच में इन्होंने इस तरीके के ना जाने कितने कारनामे किए हैं।

मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर इस बात की शिकायत जबकि गई तो शिकायतकर्ता के फोन पर नियोजन विभाग के निजी सचिव धीरज त्रिपाठी जिनका नंबर 9454468925 है। जोकि ट्रूकॉलर पर अंकित होता है। उनके फोन से शिकायतकर्ता से ही उल्टा सवाल किया जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि एक प्रशासनिक अधिकारी के निजी सचिव का फोन स्वयं सेंसर पाल सिंह ने लेकर बात की थी। जिसकी ऑडियो क्लिप मौजूद है क्योंकि इस बात की आशंका शिकायतकर्ता को तब हुई जब शिकायतकर्ता ने दोबारा उसी नंबर पर फोन करके शाम के समय उक्त प्रकरण के संबंध में बात करनी चाही तो फोन करने वाले व्यक्ति को इस बात की जानकारी ही नहीं थी।

हालांकि सेंसर पाल सिंह का नाम लेने के बाद उक्त अधिकारी ने बात को घुमाने की पूरी कोशिश की। इस बात से यह साफ साफ जाहिर होता है कि सेंसर पाल का दबदबा अपने विभाग में किस तरह का है कि वह किसी भी अधिकारी से उसका फोन लेकर किसी को भी धमकी दे सकता है। अब सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि सांख्यिकी पद पर तैनात सेंसर पाल सिंह इसी माह में सेवानिवृत्त होने वाला है। ऐसे में उनकी जांच प्रक्रिया को ठंडे बस्ते में डालने की जांच अधिकारियों द्वारा पूरी कोशिश की जा रही है और इसमें विभाग के उच्च अधिकारी सेंसर पाल का सहयोग करते नजर आ रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री की नाक के नीचे जब इस तरह का भ्रष्टाचार हो रहा है, तो फिर पूरे प्रदेश का क्या हाल होगा यह चिंता का विषय बना हुआ है।

शिकायतकर्ता ने कई बार उच्चाधिकारियों से संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन उच्च अधिकारी ना तो फोन उठाते हैं और ना ही मिलना चाहते हैं। क्योंकि सेंसर पाल सिंह के भ्रष्टाचार में कहीं ना कहीं उक्त अधिकारी भी भ्रष्टाचार में लिप्त है। यही कारण है कि सेंसर पाल सिंह को बचाने की पूरी कोशिश नियोजन विभाग के अधिकारी और वित्त विभाग के अधिकारी कर रहे हैं। क्योंकि अगर सेंसर पाल सिंह की भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ तो उन लोगों के ऊपर भी गाज गिर सकती है। इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि जिस व्यक्ति के ऊपर आरोप लगाए गए हैं वही व्यक्ति स्वयं जांच अधिकारी बना हुआ है। जो सबसे बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह है, अब देखने वाली बात यह होगी कि इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्या कार्यवाही करते हैं या अपनी नाक के नीचे भ्रष्टाचार को इसी तरह पनपता छोड़ देते हैं।


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