महामारी के दौर में खाद्य सुरक्षा: नीतिगत समस्याएं


लेखक: विजय श्रीवास्तव (सहायक आचार्य , लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय)
सह-लेखक: आशुतोष चतुर्वेदी

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 ,के अनुसार भोजन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है| इस संवैधानिक अधिकार को वर्ष 2013 में राष्ट्रीय खाद सुरक्षा अधिनियम के रूप में संसद द्वारा अधिसूचित किया गया था| इसमें सीमान्त श्रीमिकों , गरीब कामगारों, कुपोषित बच्चों , गरीब महिलाओं और परंपरागत काश्तकारों को अंत्योदय योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की बात की गई थी | इस अधिनियम में मध्यान्ह भोजन योजना के अंतर्गत पोषित खाद्य पदार्थ करने का प्रावधान किया गया था| गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार इसके लिए चिन्हित किए गए थे| पोषित भोजन और खाद्य सामग्री के वितरण की जिम्मेदारी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत की जानी निश्चित की गई थी| खाद्य सुरक्षा एक गंभीर प्रश्न है ,क्योंकि इसका संबंध ‘गरीबी के दुष्चक्र’ से होता है | स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई योजनाएं , प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर गरीबी उन्मूलन से ही संबंधित है | व्यापक अर्थों में खाद्य सुरक्षा का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति को संतुलित आहार के लिए शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय साधन उपलब्ध कराना है | इसके घटकों में , शुद्ध पेय जल की उपलब्ध्ता , प्राथमिक चिकित्सा के सुलभता और , स्वच्छता और जीबन की प्रत्याशा सम्मिलित है |

खाद्द्य सुरक्षा के लिए भारत सरकार ने मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों आधारों को ध्यान में रखते हुए तीन खाद्य आधारित सुरक्षा जाल अपनाये थे | इनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली , समेकित बाल विकास योजनाएं और मध्याह्न भोजन योजनायें प्रमुख है| रोजगार सृजन और गरीबी उन्मूलन की कई योजनाओं का भी इनसे अप्रयत्क्ष संबध था | इतना ही नहीं राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्रों में खाद्य सुरक्षा को लेकर बड़े –बड़े वादे भी करते हैं | लेकिन क्या भारत में खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में अनुकूल परिणाम मिले हैं ? और इस पहलू की ओर किये गए उच्च सामाजिक शोध क्या इंगित करते हैं ?

शोध और आकंड़ों की दृष्टि से देखें तो भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं दिखाई देती है | ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश (यूपी) के अपने सर्वेक्षणों में, ममता प्रधान और देवेश रॉय ने पाया कि लिंग, जाति और वर्ग जैसे सामाजिक विभेद भारत में पीडीएस के साथ-साथ लाभार्थियों को कैसे प्रभावित करते हैं, साथ ही साथ विभिन्न वर्गों के लिए कैसे सेवाएं प्रदान की जाती हैं। विशालता के बावजूद, प्रधान और रॉय मानते हैं कि पीडीएस को कमजोर संस्थानों की समस्याओं, अभिजात वर्ग के कब्जे, किराए की मांग, और अक्षम प्रौद्योगिकियों का सामना करना पड़ता है ,जो भोजन तक पहुंच में बाधा डालते हैं| इकोनॉमी और पॉलिटिकल वीकली , जर्नल में प्रकाशित एक लेख का उदाहरण ,भारत में सामाजिक विभेद के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमियों को दर्शाता है कि किस प्रकार “बिहार में एक महिला ने दावा किया कि भूमिहार परिवार के प्रति उनकी निष्ठा के कारण उन्हें राशन कार्ड से वंचित कर दिया गया था जिन्होंने गाँव में पंचायत चुनाव लड़ा था और हार गए थे। जबकि एक अन्य मामले में, एक 75 वर्षीय एससी महिला ने स्थानीय सत्ता संबंधों, विशेष रूप से सत्तारूढ़ सवर्ण मुखिया के साथ अपने मृतक पति के राजनीतिक टकराव का आरोप लगाया, क्योंकि बीपीएल राशन कार्ड प्राप्त करने में उनके संघर्ष का कारण था। यहां तक कि वार्ड सदस्यों और मुखिया ने स्वीकार किया कि उन्होंने लाभार्थी सूची से उसका नाम जानबूझकर काट दिया है।“

खाद्य सुरक्षा गरीबी उन्मूलन सतत विकास के लक्ष्य में शामिल है | जबकि खाद्य सुरक्षा से संबंधित दिशा निर्देशों का सही ढंग से पालन नहीं हो रहा है राज्य तथा जिला स्तर पर इसके क्रियान्वयन में समस्याएं आ रही हैं , कोविड-19 के दौर में अंत्योदय और प्रधानमंत्री जन कल्याण योजना द्वारा गरीब पिछड़े और प्रवासी श्रमिकों का पोषण युक्त आहार प्रदान करना एक कठिन लक्ष्य लगता है | संशय करने का कारण भी है,11 फरवरी 2020 को लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के संदर्भ में सरकार ने खुद एक खाद्य सुरक्षा वितरण प्रणाली में भयावह अनियमितता और भ्रष्टाचार की बात स्वीकार की है | “प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय मंत्री ने बताया “लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के कामकाज में अनियमितता के बारे में शिकायतें आई हैं, जिसमें खाद्यान्नों का रिसाव / विचलन, खाद्यान्न, अपेक्षित लाभार्थियों तक नहीं पहुँचना, कुछ राज्यों या क्षेत्रों में अपात्रों को राशन कार्ड जारी करना आदि शामिल हैं। पीडीएस केंद्र और राज्य / केंद्रशासित प्रदेश सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी के तहत संचालित होता है, जिसमें संबंधित राज्य / केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के साथ राज्य / केंद्रशासित प्रदेश के भीतर पीडीएस के कार्यान्वयन के लिए परिचालन जिम्मेदारियां होती हैं। इसलिए, जब सरकार को व्यक्तियों और संगठनों के साथ-साथ प्रेस रिपोर्टों के माध्यम से शिकायतें मिलती हैं, तो उन्हें जांच और उचित कार्रवाई के लिए संबंधित राज्य / संघ राज्य सरकारों को भेजा जाता है।“ किंतु खेद का विषय यह है कि संसद में इस महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करते समय कोई भी नीतिगत उत्तर नहीं दिया गया , जबकि संसद में 6 दिसंबर 2019 को महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी ने स्वीकार किया कि खाद्य सुरक्षा का संबंध कृषि विविधीकरण, खाद्य उत्पादकता की स्थिरता, खेती को बढ़ावा देने के लिए नीति समर्थन, विपणन और मक्का जैसे पारंपरिक मोटे अनाज की मांग का उत्पादन, भंडारण क्षमता में सुधार, सुरक्षा जाल कार्यक्रमों को मजबूत करना, बाल आहार प्रथाओं में सुधार, खाद्य अनुपूरक कार्यक्रम, माँ और बच्चे की देखभाल के तरीके, मातृ एनीमिया को प्राथमिकता देना, एन्हांसिंग बर्बाद करने की व्यापकता, जल में सुधार, स्वच्छता और स्वच्छता प्रथाओं, लिंग मुद्दों, भोजन की खपत के पैटर्न और व्यवहार, भोजन और पोषण के विभिन्न स्तंभों के लिए प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग से है |

केंद्र सरकार ने 26 मार्च 2020 को 1.7 लाख करोड़ प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएम-जीकेवाई) राहत पैकेज के हिस्से के रूप में योजना की घोषणा की। यह योजना उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय (MCAFPD) के तहत खाद्य विभाग के सार्वजनिक वितरण विभाग (DoFPD) द्वारा संचालित है। इस योजना का उद्देश्य अंत्योदय योजना (AAY) के सभी लाभार्थियों को पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के प्रावधानों के अनुसार लक्षित सार्वजनिक उपक्रम प्रणाली (टीपीडीएस) के अंतर्गत आने वाले राशन कार्ड धारकों को प्राथमिकता वाले घरेलू (PHH) राशन कार्ड धारक इस योजना के लाभार्थी होगें|
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 26 मार्च, 2020 को lakh 1.70 लाख करोड़ प्रधानमंत्री ग्रामीण कल्याण योजना के तहत महिलाओं, गरीब वरिष्ठ नागरिकों और किसानों को मुफ्त खाद्यान्न और नकद भुगतान की घोषणा की। इसके अलावा, इसके अलावा बताया गया कि 5 मई 2020 तक, विभिन्न राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में 2.42 लाख मीट्रिक टन दालें भेजी जा चुकी थीं और वहाँ 5.2 5.2 करोड़ घरेलू लाभार्थियों को वितरित किया गया था। राहत पैकेज के हिस्से के रूप में, सरकार ने उन प्रवासियों के लिए दो महीने की मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति की भी घोषणा की थी जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत शामिल नहीं थे या जिन्होंने राशन कार्ड धारण नहीं किया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत में किए गए कदमों की घोषणा करते हुए कहा कि 26 जनवरी 2020 को 1.70 लाख करोड़ की प्रधानमंत्री ग्रामीण कल्याण योजना के तहत महिलाओं, गरीब वरिष्ठ नागरिकों और किसानों को मुफ्त खाद्यान्न और नकद भुगतान की घोषणा की गई। इसके अलावा, यह बताया गया कि 5 मई 2020 तक, 2.42 लाख मीट्रिक टन दालों को विभिन्न राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में भेज दिया गया था और वहाँ 5.2 5.2 करोड़ घरेलू लाभार्थियों को वितरित किया गया था। राहत पैकेज के हिस्से के रूप में, सरकार ने उन प्रवासियों के लिए दो महीने की मुफ्त खाद्यान्न आपूर्ति की भी घोषणा की थी जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत शामिल नहीं थे या जिन्होंने राशन कार्ड धारण नहीं किया था।

खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में भारत के आंकड़े संतोषजनक नहीं है | लोकसभा में चर्चा के दौरान ये , 13 मार्च, को केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि राष्ट्रीय स्वास्थ सर्वेक्षण के अनुसार, 22.9% महिलाएं (15-49 वर्ष) कम वजन वाली हैं (बॉडी मास इंडेक्स <18.5 kg / m2) जो कि पिछले NFHS-3 के स्तर से घटकर 35.5% महिलाएं (15-49 वर्ष) हैं। कुपोषण का प्रचलन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अलग-अलग है। राष्ट्रीय औसत से अधिक वजन वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में झारखंड, बिहार, दादरा और नगर हवेली, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र हैं। सरकार ने ये भी स्वीकारा कि कुपोषण एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है, जो मुख्य रूप से गरीबी, पहुँच और उपलब्धता के मुद्दों, अपर्याप्त खाद्य वितरण, अनुचित मातृत्व शिशु और बच्चे को खिलाने और देखभाल प्रथाओं, असमानता और लिंग सहित कई सामान्य कारकों से प्रभावित है। असंतुलन, खराब स्वच्छता और पर्यावरण की स्थिति; और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक देखभाल सेवाओं तक सीमित पहुंच इसके प्रमुख कारण हैं |
कोरोना काल में दिए गए खाद्य सुरक्षा पैकेज और आवंटन की गई राशि को कुपोषण को तब तक नहीं मिटा सकती जब तक संसद में की गई इन विषयों पर की गई बहस को नीतिगत तरीके से लागू न किया जाए| सरकार ने कोरोना का हाल में लागू की गई खाद सुरक्षा नीतियों में खानापूर्ति की है | खाद्य सुरक्षा की पूर्ववर्ती नीति पर कोई ध्यान नहीं दिया| माना कि एक नीतियाँ अल्पकाल में बनाई गई हैं ,परंतु जब विषय गंभीर हो तो नीतिगत विमर्श भी गंभीर होना चाहिए प्रधानमंत्री जन कल्याण योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के सार्वजनिक नीति के नियमों और विनियमों का पालन करना आवश्यक था, जो कि हुआ नहीं फिर भी हम आशा करते हैं कि महामारी के इस दौर में सभी को पोषित भोजन का अधिकार मिले|


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