वाराणासी: रामनगर में इस बार नहीं होगी ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध रामलीला, लगभग ढाई सौ वर्ष का टूटेगा रिकार्ड


वाराणासी। उमेश सिंह: कोरोना के संक्रमण का असर आम जनजीवन और कारोबार पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि तीज – त्योहार और धार्मिक आयोजन भी इसके चलते बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। कोरोना के चलते, इस बार वाराणासी के रामनगर की ऐतिहासिक व विश्व विख्यात रामलीला पर भी ग्रहण लग गया है और पहली बार ऐसा हो रहा है कि इस वर्ष रामलीला का मंचन नहीं होगा। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि लगभग 250 साल पहले महाराज बनारस, काशी नरेश ने शुरू करवाई थी रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला। रामनगर की इस रामलीला को देश विदेश से लोग देखने आते हैं और कहा जाता है कि यह ऐतिहासिक रामलीला विश्व की सबसे पुरानी रामलीला है।

रामनगर की इस ऐतिहासिक रामलीला का आयोजन बनारस के राज घराने की ओर से होता है, लेकिन इस वर्ष काशीराज परिवार की ओर से महामारी और कोरोना संक्रमण के फैलाव को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि इस वर्ष रामलीला न होकर केवल उसका पाठ करवाया जायेगा और महाराज काशी नरेश की उपस्थिति में संध्या आरती होगी।

यूं तो देश भर में रामलीलाओं का मंचन किया जाता है, लेकिन अगर रामनगर की रामलीला की बात करें तो लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व वाराणासी के राज परिवार की ओर से रामनगर में शुरू हुए ऐतिहासिक रामलीला मंचन का अपना एक अलग मकाम है। यह दुनिया की सबसे पुरानी रामलीला मानी जाती है। आज के आधुनिक तकनीक के युग में भी रामनगर की रामलीला अपनी तरह की अनूठी है जो बगैर बिजली की रोशनी और बगैर लाउडस्पीकर के खुले आसमान के नीचे आयोजित होती है। रामनगर की रामलीला में परंपराओं का रस और रामभक्ति का भाव है। दुनिया भर में अलग पहचान रखने वाली रामलीला समय के साथ पुरानी तो हुई लेकिन कलेवर आज भी 250 साल पुराना ही है, तड़क-भड़क और तकनीकी से दूर। इस लीला में रामभक्ति का भाव है जो एक महीने तक चलने वाले इस उत्सव से भक्तों को बांधे रखता है और विदेशी भी इसके सम्मोहन में बंधे चले आते हैं।

रामनगर की रामलीला तकनीकी के दौर में भी पुरानी रवायत, सदियों की संस्कृति को सहेजे हुए है। रामनगर की रामलीला कब शुरू हुई, इसका कोई स्पष्ट ऐतिहासिक साक्ष्य तो नहीं हैं लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि लगभग 250 वर्ष पूर्व अनंत चतुर्दशी के दिन काशी नरेश, महाराजा उदित नारायण ने इसे शुरू कराया था। इस ऐतिहासिक रामलीला की तैयारियां सावन मास में ही शुरू हो जाती है। पात्रों का चयन खुद महाराज करते हैं और चयन के उपरांत उन पात्रों को लगातार तीन माह तक प्रशिक्षण दिया जाता है इस दौरान सभी चयनित मुख्य पात्रों को यही निवास करना होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न के रूप में चयनित पात्रों की आयु 8 वर्ष से 14 वर्ष तक की होती है औऱ ये सभी बालक होते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि इस रामलीला में जितने भी पात्र होते हैं वो सभी ब्राह्मण कुल के होते हैं। पूरी रामलीला अवधी भाषा में होती है, इसलिए पात्रों को अवधी भाषा का सटीक उच्चारण करना सिखाया जाता है।

रामलीला में चयन के बाद पात्र, अपने परिवार से पूरी लीला की अवधि तक नहीं मिल नहीं सकते:

चारों भाइयों समेत सीता, हनुमान समेत अन्य पात्रों का चयन होने के बाद उनका जीवन रामलीला तक बदल जाता है, वह रामनगर में राज अतिथि की तरह रहते हैं। भोर से ही उनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। मन, कर्म और वचन से उनको आदर्श का पालन करना होता है। 31 दिनों तक चलने वाली लीला में पात्र लीला स्थल तक अपने पैरों पर चलकर नहीं जाते।

अयोध्या और जनकपुरी भी है रामनगर में:

रामनगर की रामलीला की सबसे बड़ी खासियत है, लीला का अलग-अलग स्थान। यह रामलीला, रामनगर के लगभग 5 किलोमीटर की परिधि में होती है और यहां अयोध्या, जनकपुरी, लंका, अशोक वाटिका, पंचवटी समेत रामायण के अनेक स्थल हैं। सालों की ये परंपरा आज भी कायम है। लीला का स्थल बदलना भक्तों के लिए खासा आकर्षक होता है।

काशी नरेश करते हैं रामलीला का शुभारंभ:

रामनगर की रामलीला का आरंभ काशी नरेश करते हैं। पहली लीला के मंचन से आज तक यह परंपरा जारी है। लीला के पहले दिन हाथी पर सवार होकर काशी नरेश पहुंचते हैं और श्रीराम जानकी समेत चारों भाइयों की पूजा करते हैं। काशी नरेश, सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार रोजाना की लीला में शामिल होते हैं। वह लीला स्थल पर सबसे पीछे हाथी के हौदे पर सवार होते हैं। लीला का समापन भी रोजाना काशी नरेश की आज्ञा पर ही होता है।


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