खास रिपोर्ट: पीएम मोदी के मन की बात और ट्रेडिशनल इंडस्ट्री, यह है जमीनी हकीकत


वाराणसी। उमेश सिंह: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में ट्रेडिशनल इंडस्ट्री को आने वाले समय में रोजगार और राजस्व दोनों ही दृष्टिकोण से एक आदर्श सेक्टर बताया है लेकिन क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मन की बात और धरातल पर जो खिलौना उद्योग से जुड़े हुए लोग हैं क्या दोनों में कोई समानता है या प्रधानमंत्री जी के बातों से पूरी तरह से कारीगर इत्तेफाक नहीं रखते क्या है जमीनी हकीकत यह समझने के लिए हम पहुंचे बनारस के खिलौना उद्योग से जुड़े हुए कारीगरों के पास देखिये इस खास रिपोर्ट में:- 

लकड़ी के इस खिलौने को बनाने वाले बुजुर्ग हैं नंदू जो इस कारोबार से पिछले 50 सालों से जुड़े हुए हैं और लकड़ी के सामन बनाने का काम करते हैं। आज भी महज ₹4000 महीने की मजदूरी पर काम कर रहे हैं। नंदू का कहना है कि प्रधानमंत्री जी अगर चाहते हैं कि इस विधा से जुड़े हुए कारीगर और जो कुशल मजदूर हैं उनकी बेहतरी हो तो सबसे पहले उन को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके बनाए हुए मालवीय के और उनको मार्केट मिले। क्योंकि जब तक माल बिकेगा नहीं उनको काम मिलेगा नहीं और जब तक काम नहीं मिलेगा तब तक उनको जो उनको वाजिद मजदूरी है वह नहीं मिलेगी। तो नंदू चाहते हैं कि प्रधानमंत्री जी मालवीय के इसके लिए वह उनकी पीड़ा को समझें। दूसरी तरफ पिछले 20 सालों से इस रोजगार से जुड़े हुए गौतम कहते हैं कि सिर्फ सम्मान कर देने से या ट्रेडिशनल इंडस्ट्री बता देने भर से इस विधा का कोई लाभ नहीं होने वाला, अगर प्रधानमंत्री जी चाहते हैं कि हम मजदूरों का या हम खिलौना उद्योग से जुड़े हुए कारीगरों का वाकई हमारा अगर कुछ बेहतर हो तो इसके लिए जरूरी है कि सरकार हमें जो सुविधाएं हैं वह सुनिश्चित करें इस लॉक डाउन के समय में बहुत से कारीगर काम छोड़कर दूसरा काम कर रहे हैं तो ऐसी स्थिति न आने पाए इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह हमारी मदद करें और इस सेक्टर में जो लोग काम कर रहे हैं उनकी बेहतरी के लिए जो आवश्यक कदम हो वह तत्काल प्रभाव से उठाए।

पिछले कई दशक से खिलौने उद्योग से जुड़े और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित रामेश्वर सिंह बताते हैं कि इस उद्योग में राजस्व और रोजगार के लिए अपार संभावनाएं हैं लेकिन कुछ मूलभूत आवश्यकताएं अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा। रामेश्वर सिंह जो नेशनल अवॉर्डी हैं यह बताते हैं कि 3 मूलभूत आवश्यकताएं अगर सरकार पूरी करदे तो इस उद्योग को फैलने से कोई नहीं रोक सकता पहली आवश्यकता है कि जो लकड़ी जिससे खिलौना बनता है वह लकड़ी जो परंपरागत लकड़ी है लकड़ी की उपलब्धता पर्याप्त रूप से कार्य करो तक हो यह सरकार सुनिश्चित करें क्योंकि कोरिया की लकड़ी से ही खिलौने बनते हैं और उसकी अनुपस्थिति में यूकेलिप्टस जैसे पेड़ से जो लकड़ी मिलती है उसका हम उपयोग करते हैं। जो बहुत ज्यादा टिकाऊ नहीं होती तो अगर परंपरागत लकड़ी हमें मिलने लगे तो हम अपने इस खिलौना उद्योग को और बेहतर कर सकेंगे। दूसरी डिमांड वह कहते हैं कि एक वुडेन टेस्ट के लिए एक लैब का होना जरूरी है कि लकड़ी की आंतरिक बनावट कैसी है, लकड़ी कितने दिन टिकेगी, उस पर जो हम काम करेंगे वह किसका होगा, उससे कोई नुकसान तो नहीं होगा और तीसरा जो तकनीक है वो आधुनिक तकनीक है। आधुनिक तकनीकों को परंपरागत खिलौने से जोड़ना होगा ताकि आज की जो युवा पीढ़ी है या आज के जो बच्चे हैं उनकी डिमांड को हम पूरी कर सके।

अगर यह तीन आवश्यकताएं सरकार पूरी करने में हमारा सहयोग करती है तो इस उद्योग को और ज्यादा इसका प्रसार कर सकते हैं और ज्यादा इसमें रोजगार और राजस्व की संभावनाएं बनी हुई है इस उद्योग से जुड़े हुए एक युवा कारीगर राजकुमार का कहना है कि पिछले 6 सालों में स्थिति बदली है जबसे खिलौना उद्योग का दिया हुआ है उसके बाद से लोगों का भरोसा भी बड़ा है और कारीगर वापस भी लौटने लगे हैं लेकिन तकनीकी स्तर पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है और सरकार को इस ओर ध्यान आकृष्ट करना होगा हमारा सहयोग करना होगा बड़ी मशीनरी हमारे पास नहीं है सरकार को बड़ी मशीनरी स्थापित करने में हमारा सहयोग करना होगा डिजाइन को लेकर भी बहुत कुछ किया जाना है इसमें भी हमें सरकार से उम्मीद है कि सहयोग मिलेगा पिछले कई सालों से जी आई प्रोडक्ट पर काम करने वाले एक्सपर्ट के तौर पर रजनीकांत का मानना है कि मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद से परंपरागत खिलौना उद्योग की तस्वीर बदली है बनारस के ही लकड़ी के खिलौने के उद्योग का उदाहरण रखते हुए वह बताते हैं कि सालाना 30 करोड़ के राजस्व वाला यह छोटा सा सेक्टर जिसमें 3000 कारीगर काम करते हैं पिछले 25 सालों में मृतप्राय हो गया था उसको मोदी सरकार ने संजीवनी दी है और जिस तरीके से प्रधानमंत्री ने मन की बात में खिलौने उद्योग पर विशेष रूप से लकड़ी के खिलौनों पर उन्होंने चर्चा की उसके बाद से इस उद्योग की तस्वीर बदलेगी इस बात के प्रति वह पूरी तरह से आश्वस्त हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के जरिए खिलौना उद्योग को रिवाइव करने का जो एक संकेत दिया है वह स्वागत योग्य है लेकिन अभी भी खिलौना उद्योग में बहुत सी ऐसी मूलभूत आवश्यकताएं हैं जिस पर सरकार को कारीगरों के साथ मिलकर काम करना होगा महल मार्केट उपलब्ध करा देना या प्रोडक्ट की ब्रांडिंग ही सरकार की जिम्मेदारी नहीं है सरकार को यह भी देखना होगा कि उद्योग से जुड़े हुए जो रो मटेरियल हैं और जो आधुनिक समय में तकनीकी डिमांड है उसको कारीगर कैसे पूरा करेंगे और उसमें सरकार कहां तक अपना सहयोग दे सकती है निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मन की बात ऐसे समय में हुई है जब पूरा देश इकनॉमिक स्लोडाउन से गुजर रहा है आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही है नौकरियों का संकट लगातार बना हुआ है ऐसे समय में प्रधानमंत्री का यह संदेश और सरकार की यह जो मंशा है कि हम परंपरागत अपने उद्योगों के जरिए राजस्व और रोजगार।


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