विशेष पड़ताल: कोरोना काल मे सरकार और समाज की सबसे निचली कड़ी का यह है हाल


उत्तर प्रदेश। उमेश सिंह: कोरोना काल में सरकार और समाज के बीच की सबसे निचली कड़ी अगर कोई है तो वो हैं आशा वर्कर्स। रोज़ सुबह घर से निकलकर लोगों के बीच में जाना उनका कोरोना टेस्ट करना उनसे स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी लेना ये सबकुछ आशा बहुओं के ही भरोसे है। लेकिन आशा वर्कर्स किसके भरोसे हैं? जिनको समाज की चिंता है उनकी चिंता सरकार को क्यूं नही है। किस हाल में हैं आशा वर्कर्स और कोरोना से जंग लड़ने वाली इन वारियर्स को सरकार से क्या मिल रहा है इन सब बातों की पड़ताल करती देखिए हमारी ये विशेष रिपोर्ट।

सलारपुर की सुशीला मौर्या बताती हैं की चिरईगांव में कोरोना सर्वे का काम चल रहा है।लोगों के बीच बिना संसाधन के जाना पड़ रहा है।शुरू में कुछ सेनेटाइजर और थर्मल स्कैनिंग जरूर मिला था लेकिन बाद में वो भी ले लिया गया।अब लोगों से उनके स्वास्थ्य संबंधी सामान्य सी जानकारी प्रशासन को उपलब्ध कराती हैं। दो हज़ार रुपये महीने पर कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के ख़तरे के बीच सुशीला चिरईगांव के दीनापुर गांव में सर्वे के काम से जुड़ी हुई हैं। सरकार की तरफ़ उम्मीद भरी नज़रों से देखने वाली सुशीला को सरकार से क्या मदद मिलती है ये तो सरकार को तय करना है।

दीनापुर की सविता की सुनिये सरकार ये आप से गुहार लगा रही हैं की हमारे परिवार की सुरक्षा भगवान भरोसे है सविता पूछ रही हैं सरकार हमारी जान की कोई कीमत है भी की नही?
सविता से जब हमने पूछा की तनख्वाह क्या मिलती है?
मानो किसी ने सविता की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो कहने लगी तनख्वाह नही मिलता है साहब मानदेय मिलता है। आठ मद में कुल दो हज़ार रुपये और वो भी किसी न किसी रूप में कटकर ही आता है।1600 से 1800 के बीच मिलता है। डिलीवरी कराने और फाइलेरिया जैसी कई बीमारियों में सरकार ई मददगार ये आशा बहनें सरकार से खुद मदद की आस लगाए हुए हैं।

मन्दरी देवी दस दिन के कोरोना सर्वे के काम में लगी हुई हैं। लेकिन ब्लॉक से न तो इनको कोई सुरक्षा के परपज़ से किट दिया गया है और न ही इनके स्वास्थ्य की चिंता ही किसी को है। मन्दरी देवी बताती हैं की शुरू में कुछ सेनेटाइजर और एक मास्क दिया गया था। लेकिन मास्क टूट गया और सेनेटाइजर खत्म हो गया। सबकुछ भगवान भरोसे है।

किसी भी व्यवस्था की सफलता उसके नींव की मजबूती पर निर्भर करती है।लेकिन अफसोस की उत्तरप्रदेश के स्वास्थ्य महकमे को अपनी नींव की कोई चिंता नहीं। कोरोना काल मे आशा बहनें वो नींव हैं जिनपर कोरोना से मुकाबला करने की महती जिम्मेदारी है। लेकिन बिना सुरक्षा और प्रोत्साहन के वो ये कैसे कर पाएंगी ये कहना बड़ा मुश्किल है।


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