माहे मोहर्रम की दसवीं पर नहीं दफ्न हुए ताज़िये, अज़ाखानों में चढ़ाए गए फूल


लखनऊ। बख्शी बाज़ार स्थित इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन से दसवीं मोहर्रम पर तक़रीब १५० बरस पुराना तुरबत का जुलूस कोविड १९ और सरकार की तरफ से लगी रोक के कारण नहीं निकाला गया।अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सै०मो०अस्करी ने बताया की तुरबत का जुलूस जो बख्शी बाज़ार इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन से उठ कर दायरा शाह अजमल, रानी मण्डी, चडढ़ा रोड, कोतवाली, नखास कोहना, खुलदाबाद, हिम्मतगंज होते हुए चकिया स्थित शिया करबला पर जा कर सम्पन्न होता था।

वह इस वर्ष नहीं उठाया गया। इमामबाड़े पर ही मजलिस हुई जिसे मौलाना आज़म मेरठी ने खिताब किया और ग़मज़दा हो कर हुसैन ए मज़लूम की शहादत का जनाबे फात्मा ज़हरा को पुरसा दिया। सरकारी गाईड लाईन पर अमल करते हुए बहोत कम संख्या में उपस्थित लोगों ने शिरकत की। तुरबत को फूलों से सजा कर इमामबाड़े से घर में ही गश्त कराकर उसी इमामबाड़े में पुनः रख दिया गया। तुरबत के आस पास बैठ कर घर की औरतों और मर्दों ने नम आँखों से पुरसा पेश करते हुए अलवेदा या हुसैन की सदा बुलन्द की।इमामबाड़े की देख रेख की ज़िम्मेदारी निभाने वाले नूरुलऐन आब्दी, ज़ुलक़रनैन आब्दी, रईस मेंहदी, तय्याबैन आब्दी, फराज़ आब्दी, मोहम्मद मेंहदी, अहद मेंहदी, अज़मी मेंहदी, ज़ामिन हसन, मिर्ज़ा अज़ादार हुसैन आदि शामिल रहे।

सात क़िस्म के भूने अनाज से हुई फ़ाक़ा शिकनी:

दिन भर भूखा प्यासा रहने के बाद शाम को सात तरीक़े के भूने अनाज और खिचड़ी पर नज़्रो नियाज़ करा कर की गई फाक़ा शिकनी।माहे मोहर्रम की दसवीं पर शिया समुदाय के लोगों में हज़रत इमाम हुसैन के साथ करबला के मैदान में राहे हक़ में क़ुरबान हुए ७२ शहीदों का ग़म मनाते हुए नंगे पाँव रहे वहीं दिन भर भूखे व प्यासे रहकर इबादत और आमाल ए आशूरा की विशेष नमाज़ अदा की।देर शाम इमामबाड़ा अली नवाब में शहादते इमाम हुसैन के बाद के मंज़र को पेश करते हुए मजलिस हुई।वहीं लोगों को सतनजा (सात प्रकार के भूने अनाज) से फाक़ा शिकनी कराई गई।

ताज़िये और फूलों को दफ्न न करने देने पर विरोध स्वरुप सड़कों और घरों की लाईट बुझा कर हुई शामें ग़रीबाँ की मजलिस:

माहे मोहर्रमकी दसवीं पर ताज़िया, अलम, ताबूत, ज़ुलजनाह, तुरबत, झूला व मेंहदी के फूलों को दफ्न करने की चली आ रही पुरानी परम्परा की इजाज़त न दीए जाने से मुसलिम समाज मे बेहद बेचैनी के साथ दुख भी छाया रहा। सरकार की तरफ से ताज़िये और फूलों को दफ्न नहीं करने देने से आम लोगों की भावनाएँ आहत हुईं।ज़्यादातर लोगों का कहना था की इसी कोरोना काल में मध्य प्रदेश मे सरकार का गठन करने के साथ शपथग्रहण का भव्य कार्यक्रम किया गया वहीं राम मन्दिर के शिलान्यास में भी खुले आम कोविड १९ की गाईड लाईन की धज्जियाँ भी उड़ाई गई लेकिन गणेश उत्सव और मोहर्रम पर रोक लगा कर सरकार ने दोनो समुदाय की धार्रमिक आस्था पर कुठाराघात किया। लोगों में दसवीं पर लगाई गई रोक से इतना ज़्यादा ग़ुस्सा था की लोगों ने सड़कों, गलियों व घरों की लाईटों को बुझा कर विरोध दर्ज कराया। वहीं रानीमण्डी नवाब नन्हे की कोठी पर शामें गरीबाँ की मजलिस भी अज़ाखाने में अंधेरा कर हुई।

दरियाबाद में इमामबाड़ा अरब अली खाँ व इमामबाड़ा सलवात अली खाँ में शामे ग़रीबाँ की मजलिस में खानदाने रसूल की शहादत के बाद की मंज़रकशी करते हुए मजलिस ए शामे ग़रीबाँ हुई। मौलाना आमिरुर रिज़वी के अज़ाखाने पर मौलाना रज़ी हैदर ने मजलिस ए शामें ग़रीबाँ के खौफनाक मंज़र और अहले हरम को लूटने और खैमों में यज़ीदी लशकर द्वारा आग लगाने की घटना का विस्तार से वर्णन किया। इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन बख्शी बाज़ार में मोमबत्ती जला कर हाँथों में खाली कूज़े लेकर छोटे छोटे बच्चे हाय सकीना हाय प्यास अल अतश अल अतश की सदा बुलन्द करते रहे।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *