भारत में 22 दिन में केस दोगुना, महामारी पहुंची चरम सीमा पर


भारत में कोरोना की संख्या कहर ढा रही हैं। स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआइ) की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में सामान्यतया 75 फीसद रिकवरी की दर के बाद कोरोना के मामले घटने का ट्रेंड देखा गया है। भारत में रिकवरी की दर 73 फीसद तक पहुंच गई है। रिकवरी की यह दर को पार करने वाले पांच राज्य दिल्ली, तमिलनाडु, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और त्रिपुरा कोरोना के चरम को पार कर चुके हैं, लेकिन 22 राज्यों में यह पीक आना अभी बाकी है।

73 फीसद रिकवरी रेट के साथ भारत पीक के करीब पहुंच गया

एसबीआइ- इकोरैप रिपोर्ट में कोरोना के ट्रेंड से लेकर अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। वैसे रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि 75 फीसद रिकवरी रेट का कोरोना के पीक पर पहुंचने का कोई निश्चित मापदंड नहीं है। ब्राजील में 69 फीसद पर ही यह पीक पर पहुंच गया था। इसी तरह मलेशिया में 79.5 फीसद, इरान में 77.6 फीसद, बहरीन में 77.1 फीसद, चीन में 77 फीसद, चिली में 70.4 फीसद रिकवरी रेट पर पीक आ गया था। इस तरह से 73 फीसदी रिकवरी रेट के साथ भारत पीक के बिल्कुल करीब पहुंच गया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगले दो से तीन हफ्ते में भारत पीक पर पहुंच जाएगा।

दूसरे देशों के मुताबिक भारत में कोरोना के केस दोगुना होने की गति बहुत ज्यादा है

रिपोर्ट में महाराष्ट्र, तेलंगाना, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर हो रही कम टेस्टिंग को लेकर चिंता भी जताई गई है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के दूसरे देशों के मुताबिक भारत में कोरोना के केस दोगुना होने की गति बहुत ज्यादा है। यहां 22 दिन में कोरोना के केस दोगुना हो रहे हैं, जबकि दुनिया में केस के दोगुना होने में औसतन 43 दिन का समय लग रहा है। जाहिर है यह भी चिंता की बड़ी वजह बनी हुई है।

आम आदमी पर इसकी मार बहुत गहरी पड़ी है। कोरोना के कारण आर्थिक गतिविधियों के ठप होने से आम आदमी की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई है। एसबीआइ के अनुसार पूरे देश में इस साल प्रतिव्यक्ति औसत आय में 27 हजार रुपये कमी आएगी। तमिलनाडु, गुजरात, तेलंगाना, दिल्ली, हरियाणा, गोवा जैसे राज्यों में इसका प्रभाव और ज्यादा होगा और वहां औसत प्रति व्यक्ति आय 40 हजार रुपये तक कम हो जाएगी।

कोरोना के दौरान गिरती आमदनी ने आदमी को सीमित रहने को कर दिया मजबूर

रिपोर्ट में मुद्रास्फीति के सरकारी आंकड़ों पर सवाल उठाया गया है। इसके अनुसार लॉकडाउन के कारण नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसओ) का पुराना गणितीय फार्मूला मंहगाई की दर का सही अनुमान नहीं लगा पाया। इसमें उन वस्तुओं की कीमत को भी जोड़ा गया, जिनका इस्तेमाल लॉकडाउन के दौरान लोगों ने किया ही नहीं। लोग खाने-पीने की जरूरी चीजों पर खर्च करते रहे, जिनकी कीमत इस दौरान ज्यादा थी। इसके लिए एसबीआइ ने कोबिड से जुड़े खुदरा मंहगाई का नया इंडेक्स तैयार किया है। इस इंडेक्स के अनुसार जुलाई में खुदरा मंहगाई की दर असल में 7.5 फीसदी रही, 6.9 फीसदी नहीं, जैसा कि एनएसओ के डाटा में दिखाया गया है। कोरोना के दौरान गिरती आमदनी के साथ मंहगाई की यह दर आम आदमी को मूल जरूरत तक सीमित रहने को मजबूर कर दिया।

ग्रामीण इलाके कोरोना की चपेट में

एसबीआइ ने जुलाई-अगस्त से कोरोना के नए ट्रेंड की इशारा किया है। इस दौरान अभी तक अपेक्षाकृत बचे हुए ग्रामीण इलाके कोरोना की चपेट में आए गए हैं। जबकि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था का पूरा दारोमदार कोरोना से बचे हुए ग्रामीण भारत पर टिका हुआ था और कहा जा रहा था कि ग्रामीण क्षेत्र ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अहम साबित होंगे, लेकिन जुलाई से कोरोना ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैलने लगा। इस महीने में कुल कोरोना केस में 51 फीसद ग्रामीण इलाके से आए थे, वहीं अगस्त के पहले पखवाड़े में यह बढ़कर 54 फीसद हो गया।

कोरोना की मृत्युदर में लगातार सुधार

कोरोना की मृत्युदर में लगातार सुधार आ रहा है और यह 1.92 फीसदी के नीचे पहुंच गया है। हालांकि अभी भी एशिया में भारत में कोरोना से मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने इसे एक फीसदी के नीचे लाने का लक्ष्य रखा है। वहीं एसबीआइ ने कोरोना के अर्थव्यवस्था को हुई क्षति के कारण मृत्युदर मे बढ़ोत्तरी की आशंका जताई है।

एसबीआइ के अनुसार यदि राज्य सरकारें बिना सोच-विचार के लॉकडाउन लगाकर और हटाकर सामान्य जीवनयापन के साधनों को प्रतिबंधित करती रही तो इससे 0.55 फीसद से लेकर 3.5 फीसद मौतें हो सकती है, जो कोरोना के कारण हुई मौतों के अतिरिक्त होगी, लेकिन रिपोर्ट में यह साफ नहीं किया गया है कि ये अतिरिक्त मौतें किस रूप में होगी। इसमें कोरोना के कारण लोगों के भूख या किसी अन्य कारण से मरने का कोई जिक्र नहीं है।


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